मंगलवार को गावा काली मांडा के प्रांगण में मनाया गया महाराणा प्रताप की जयंती…

Abhimanyu Kumar
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मंगलवार को गावा काली मांडा के प्रांगण में मनाया गया महाराणा प्रताप की जयंती। आपको बता दें कि महाराणा प्रताप भारत के महान शूरवीर सपूतों में एक थे. वीरों के वीर महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया जिनके शौर्य, त्याग और बलिदान की गाथाएं आज भी देश में चारों ओर गूंजती हैं. महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजपूत राज परिवार में हुआ था. पिता उदय सिंह मेवाड़ा वंश के शासक थे. महाराणा प्रताप उनके बड़े बेटे थे. महाराणा प्रताप के छोटे तीन भाई और दो सौतेली बहनें थीं. शूरवीर महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों के खिलाफ अनगिनत लड़ाइयां लड़ी थीं. अकबर को तो उन्होंने ( 1577,1578 और 1579 ) युद्ध में तीन बार बुरी तरह हराया था.

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कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाई और जमीन पर सोकर रात जरूर गुजारी, लेकिन अकबर के सामने कभी हार नहीं मानी. यह भी कहा जाता है कि महाराणा प्रताप अपनी तलवार से दुश्मनों के एक झटके में घोड़े सहित दो टुकड़े कर देते थे.

इस वजह से साल में 2 बार मनाई जाती है महाराणा प्रताप की जयंती

गौरतलब है कि भारत की आन-बान-शान और वीरों के वीर महाराणा प्रताप का जन्मदिन साल में दो बार मनाया जाता है. 9 मई 2023 को उनकी 486वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी. इस अवसर पर हम आपको उनके जीवन से जुड़ी प्रेरक और रोचक पहलुओं से रूबरू कराएंगे. बात दें, कुछ विशेष कारणों से महाराणा प्रताप की दो जयंतियां मनाई जाती हैं. इसमें एक तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 9 मई 1540 है, वहीं बहुत से लोग उनका जन्मदिन हिंदू पंचांग के अनुसार जेठ मास की तृतीय को गुरु पुष्य नक्षत्र में मनाते हैं.
सिसोदिया वंश के शूरवीर महाराणा प्रताप सिंह का विशाल व्यक्तित्व था, उनकी लंबाई 7 फुट 5 इंच थी जोकि अकबर की लंबाई से बहुत ज्यादा थी. उनके बलशाली शरीर का वजन 110 किलोग्राम था. युद्ध के मैदान में 104 किलो की दो तलवारें अपने पास रखते थे, ताकि जब कोई निहत्था दुश्मन मिले तो एक तलवार उसे दे सकें. क्योंकि महाराणा प्रताप निहत्थों पर वार नहीं करते थे. उनके भाले का वजन 80 किलो और कवच का वजन 72 किलो हुआ करता था. महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक बहुत ताकतवर था. आपको बता दें कि महाराणा प्रताप का एक हाथी भी हुआ करता था. उसका नाम रामप्रसाद था, वो भी बहुत ही बलशाली था.
बैटल ऑफ दिवेर’ और ‘थर्मोपल्ली ऑफ मेवाड़ा’
यह वीर महाराणा प्रताप के शौर्य का ही परिणाम था कि अकबर की भारी-भरकम सेना होने के बावजूद भी उन्हें कभी गिरफ्तार ना कर सके. ना ही मेवाड़ पर पूर्ण अधिकार जमा सके. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 1576 में हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात मुगलों ने कुंभलगढ़ गोगुंदा उदयपुर और आसपास के क्षेत्रों पर कब्ज कर लिया था, लेकिन अकबर और उसकी सेना महाराणा प्रताप का बाल भी बांका नहीं कर सकी.
अकबर ने हार नहीं मानी. उसने 1577 से 1582 के बीच लाखों सैनिकों को भेजा लेकिन महाराणा प्रताप ने हर बार उसके छक्के छुड़ा दिए. अंग्रेजी इतिहासकार के अनुसार हल्दीघाटी के युद्ध को “थर्मोपल्ली ऑफ मेवाड़ा” के सम्मान से नवाजा वहीं दिवेर के युद्ध में महाराणा प्रताप को बेटल ऑफ दिवेर का था जिसमें भी महाराणा प्रताप ने अकबर को बुरी तरह हराया था.
1582 में हुआ था दिवेर का युद्ध
महाराणा प्रताप ने दिवेर युद्ध की योजना अरावली के जंगलों में बनाई थी. भामाशाह से मिली धनराशि से उन्होंने बड़ी फौज तैयार की बीहड़ जंगल भटकाव भरे पहाड़ी रास्तों और भील राजपूत स्थानीय निवासियों की गोरिल्ला युद्ध के हमलों और रसद हत्यारा लूट कर मुगल सेना की हालत खराब कर दी थी. दिवेर का युद्ध 1582 में हुआ था. इस युद्ध में मुगल सेना की अगुवाई अकबर का चाचा सुल्तान खान कर रहे थे. जब महाराणा प्रताप ने अपनी सेना को दो हिस्सों में बांट दिया.
एक हिस्से का नेतृत्व महाराणा प्रताप और दूसरे का नेतृत्व उनके बेटे अमर सिंह कर रहे थे. दिवेर के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप का पलड़ा मुगलों पर भारी पड़ने लगा तो मुगल जगह छोड़कर भाग खड़े हो गए. उन्होंने उदयपुर समेत के अहम जगह पर अपना अधिकार स्थपित कर लिया था.

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I Abhimanyu Kumar have been doing journalism for the last four years, at present I am working as the Chief-Editor of Giridih Views. You can contact me through the given link.
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