ASI ने SP, DIG और DGP पर लगाए शोषण के आरोप, कोर्ट में जाने के लिए मांगी छुट्टी, पुलिस विभाग में हलचल

Pintu Kumar
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झारखंड के सरायकेला जिले के आरआईटी थाना में पदस्थापित सहायक पुलिस निरीक्षक (एएसआई) शुभंकर कुमार ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ न्यायालय में जाने की अनुमति मांगते हुए तीन दिन का आकस्मिक अवकाश (सीएल) मांगा है। एएसआई द्वारा पुलिस अधीक्षक (एसपी), उप महानिरीक्षक (डीआईजी) और महानिदेशक (डीजीपी) के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के इस दुर्लभ कदम से पूरे पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया है। शुभंकर ने अपने आवेदन में वरिष्ठ अधिकारियों पर शोषण और मनमाने रवैये का आरोप लगाते हुए न्याय की गुहार लगाई है।

क्या है पूरा मामला?

शुभंकर कुमार का दावा है कि वर्ष 2024 में उन्हें आकस्मिक अवकाश (सीएल) और क्षतिपूर्ति अवकाश (सीपीएल) का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी गई। उन्होंने कई बार अवकाश के लिए आवेदन किया, लेकिन हर बार उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया। शुभंकर ने बताया कि अवकाश न मिलने के कारण वह मानसिक तनाव (डिप्रेशन) में हैं। उन्होंने विभाग से अपनी छुट्टियों के बदले मुआवजे की भी मांग की, लेकिन इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।

शुभंकर ने अपने आवेदन में कहा, “मैंने बेटे के जन्मदिन, काली पूजा और भतीजी की शादी जैसे महत्वपूर्ण पारिवारिक अवसरों के लिए छुट्टी मांगी थी, लेकिन मुझे अवकाश नहीं दिया गया। मेरी छुट्टियां बर्बाद हो गईं, और मुझे इसका कोई मुआवजा भी नहीं मिला।”

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व्यक्तिगत नहीं, सामूहिक समस्या

शुभंकर कुमार का कहना है कि यह मामला सिर्फ उनका व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि विभाग के कई अन्य कर्मी भी इसी तरह के शोषण और मनमानी का शिकार हो रहे हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अवकाश का अधिकार हर कर्मी का है, लेकिन विभागीय अधिकारियों की मनमानी के कारण यह अधिकार भी छिनता जा रहा है।

वरिष्ठ अधिकारियों की प्रतिक्रिया

इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए एसडीपीओ समीर कुमार सवैया ने कहा, “यह एक गंभीर मामला है। हमें हाल ही में इस संबंध में जानकारी मिली है, और हम मामले की जांच करेंगे।” एसडीपीओ ने यह भी कहा कि अब तक ऐसा कोई मामला उनके संज्ञान में नहीं आया था।

कर्मचारियों के अधिकारों पर सवाल

यह मामला विभागीय प्रक्रियाओं और पुलिस कर्मियों के अधिकारों पर सवाल खड़ा करता है। आमतौर पर विभागीय अधिकारियों के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई दुर्लभ होती है। शुभंकर कुमार का यह कदम न केवल चर्चा का विषय बन गया है, बल्कि कार्यस्थल पर पारदर्शिता और पुलिस कर्मियों के अधिकारों की स्थिति पर भी नई बहस छेड़ रहा है।

क्या होगा आगे?

अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पुलिस विभाग इस मामले में क्या कदम उठाता है। क्या शुभंकर कुमार को न्याय मिल सकेगा, और क्या उनकी यह लड़ाई विभागीय सुधारों की दिशा में कोई नया संदेश देगी? साथ ही यह भी देखना होगा कि न्यायालय में शुभंकर का यह प्रयास क्या परिणाम लाता है।

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