जमुई (बिहार): मेहनत, हौसले और आत्मविश्वास के दम पर कोई भी मुकाम पाया जा सकता है – इस बात को साबित कर दिखाया है जमुई जिले के सुरेंद्र राय ने। कभी चकाई बाजार में गुमटी में चाय बेचने वाले सुरेंद्र आज ‘सुरो भोजनालय’ नामक होटल श्रृंखला के मालिक हैं, जिसकी पांचवीं शाखा का हाल ही में देवघर में उद्घाटन हुआ है। अब तक उन्होंने 45 से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराते हुए न सिर्फ अपनी किस्मत बदली, बल्कि दूसरों के लिए भी एक उम्मीद की किरण बने हैं।
संघर्ष भरा बचपन और अधूरी पढ़ाई
साल 1978 में जमुई के छोटे से गांव रामचन्द्रडीह में जन्मे सुरेंद्र राय का बचपन आर्थिक तंगी में गुजरा। 12वीं तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें परिवार की जिम्मेदारियों के चलते पढ़ाई छोड़नी पड़ी। रोजगार की तलाश में वह दिल्ली पहुंचे, जहां मजदूरी का काम किया, लेकिन किसी और के इशारे पर काम करना उन्हें पसंद नहीं था। कुछ समय बाद वे अपने गांव लौट आए और कुछ अलग करने का निश्चय किया।
‘सुरो चाय दुकान’ से ‘सुरो भोजनालय’ तक की उड़ान
सुरेंद्र को लोग प्यार से ‘सुरो’ कहकर बुलाते थे, और इसी नाम को उन्होंने अपनी पहचान बना लिया। लगभग 24 साल पहले चकाई के पुराने बस स्टैंड पर एक छोटी सी चाय दुकान से उन्होंने अपने सपनों की शुरुआत की। 2010 में उसी इलाके में ‘सुरो भोजनालय’ के नाम से पहला होटल खोला, जहां शुद्ध शाकाहारी और मांसाहारी भोजन की व्यवस्था थी। धीरे-धीरे लोगों का प्यार और विश्वास बढ़ता गया।
भोजनालय की बढ़ती श्रृंखला और मटन के लिए खास पहचान
सुरेंद्र राय ने साल 2016 में गोपीडीह में दूसरा, 2021 में चकाई ब्लॉक के सामने तीसरा, 2022 में देवघर में चौथा और अब 2025 में देवघर के एलआईसी ऑफिस के सामने पांचवीं शाखा शुरू की है। ‘सुरो भोजनालय’ अब मटन प्रेमियों के बीच खासा लोकप्रिय है। यहां की खासियत यह है कि स्वाद के साथ-साथ सफाई और affordability पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है।
रोजगार का स्रोत बना ‘सुरो भोजनालय’
आज सुरेंद्र राय का ‘सुरो भोजनालय’ 45 से अधिक लोगों को सीधा रोजगार दे रहा है। उनका बेटा सचिन अब इस कारोबार में उनके साथ कदम से कदम मिलाकर काम कर रहा है। सुरेंद्र का मानना है कि स्वच्छ और स्वादिष्ट भोजन हर किसी का अधिकार है, और उनकी कोशिश है कि आम लोग भी बिना ज्यादा खर्च किए अच्छा खाना खा सकें।
प्रेरणा के प्रतीक बने सुरेंद्र राय
सुरेंद्र राय की कहानी उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत है, जो संघर्षों से घबराकर हार मान लेते हैं। उन्होंने यह दिखा दिया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी सपना हकीकत में बदला जा सकता है। सुरो भोजनालय सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक उम्मीद है – मेहनत, लगन और आत्मविश्वास की।

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