पूर्व कांग्रेस विधायक ज्योतिन प्रसाद का निधन, गिरिडीह की राजनीति में शोक की लहर…

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गिरिडीह के पूर्व कांग्रेस विधायक ज्योतिन प्रसाद का गुरुवार की सुबह निधन हो गया। वह लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उनका निधन बक्सीडीह रोड स्थित उनके आवास पर हुआ। उनके निधन की खबर से पूरे जिले में शोक की लहर दौड़ गई है। कई राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और आम जनता ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।

 

ज्योतिन प्रसाद ने अपना राजनीतिक सफर युवा कांग्रेस से शुरू किया था और 1980 तक वे गिरिडीह में कांग्रेस के एक मजबूत और लोकप्रिय नेता के रूप में उभर चुके थे। माइका मजदूरों के हितों की आवाज बनने के कारण वे समर्थकों के बीच ‘ज्योतिन दा’ के नाम से प्रसिद्ध हो गए थे।

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बगावत कर निर्दलीय लड़े थे चुनाव

1985 में जब कांग्रेस ने गिरिडीह सीट से उर्मिला देवी को दोबारा प्रत्याशी बनाया, तब ज्योतिन प्रसाद ने पार्टी नेतृत्व से असहमति जताई। उनका मानना था कि जनता का मूड उर्मिला देवी के खिलाफ है। माइका मजदूरों और स्थानीय जनता के सहयोग से उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन किया। उन्हें ‘साइकिल’ चुनाव चिन्ह मिला और उन्होंने पैदल व साइकिल पर चलकर जनता से संपर्क साधा।

 

हालांकि वे यह चुनाव नहीं जीत सके, लेकिन 8500 से अधिक वोट लाकर उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व को अपनी लोकप्रियता का अहसास करा दिया। इस चुनाव में कांग्रेस और ज्योतिन प्रसाद दोनों ही हार गए, जबकि सीट भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के ओमीलाल आजाद ने जीत ली।

 

1990 में कांग्रेस प्रत्याशी बनकर जीते

 

इसके बाद 1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपनी गलती सुधारी और ज्योतिन प्रसाद को गिरिडीह सीट से प्रत्याशी बनाया। इस बार उन्होंने ओमीलाल आजाद को हराकर जीत दर्ज की और गिरिडीह सीट पर कांग्रेस का परचम लहराया। हालांकि बाद में वे दोबारा चुनाव नहीं जीत सके, और सीट भाजपा के चंद्रमोहन प्रसाद के पास चली गई।

 

ज्योतिन प्रसाद अपनी ईमानदारी, सादगी और जनसरोकारों के लिए जाने जाते थे। भाजपा के वरिष्ठ नेता और गांडेय के पूर्व विधायक लक्ष्मण स्वर्णकार ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा,

 

 ज्योतिन बाबू कट्टर ईमानदार नेता थे। उन्होंने कभी एक रुपया भी घूस नहीं लिया। ऐसे नेता आज के दौर में दुर्लभ हैं। मजदूरों के लिए उनकी चिंता और जमीन से जुड़े रहना उन्हें खास बनाता था। उनका जाना स्वच्छ राजनीति के लिए बड़ी क्षति है।

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गिरिडीह की राजनीतिक ज़मीन पर ज्योतिन प्रसाद जैसा संघर्षशील और सिद्धांतवादी चेहरा अब नहीं रहेगा, लेकिन उनकी ईमानदार राजनीति की मिसाल लंबे समय तक लोगों के दिलों में जिंदा रहेगी।

 

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