हृदय रोग कभी बढ़ती उम्र की बीमारी समझे जाते थे, लेकिन तस्वीर बदल चुकी है। तेज़ रफ़्तार जिंदगी, तनाव, अनियमित दिनचर्या, जंक फूड और बैठकर काम करने की आदतों ने हार्ट पर दबाव बढ़ा दिया है। नतीजा यह है कि 20–30 की उम्र में भी लोग हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और हार्ट अटैक जैसे जोखिमों का सामना कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, कार्डियोवस्कुलर डिज़ीज़ (सीवीडी) दुनिया में मौतों का प्रमुख कारण है और हर साल क़रीब 1.79 करोड़ लोगों की जान ले लेता है। इन मौतों में बड़ी हिस्सेदारी हार्ट अटैक और स्ट्रोक की है। यह आँकड़ा केवल डराने के लिए नहीं, बल्कि चेताने के लिए है कि दिल की सुरक्षा आज हर उम्र की प्राथमिकता होनी चाहिए।
दिल की बीमारियाँ अचानक नहीं आतीं। वे वर्षों तक चुपचाप बढ़ती रहती हैं और एक दिन किसी बड़े संकट के रूप में सामने आती हैं। यही वजह है कि विशेषज्ञ “रोकथाम” को “इलाज” से ज़्यादा प्रभावी मानते हैं। यदि परिवार में किसी को पहले से हृदय रोग रहा है, मधुमेह या थायरॉयड जैसी समस्याएँ हैं, वजन बढ़ा हुआ है, या धूम्रपान/शराब की आदत है—तो सावधानी और भी ज़रूरी हो जाती है। लेकिन जो लोग अपने आपको पूरी तरह स्वस्थ मानते हैं, उनके लिए भी समय-समय पर जाँच करवाना उतना ही आवश्यक है, क्योंकि कई बार जोखिम बिना किसी स्पष्ट लक्षण के पनपते रहते हैं।
हृदय स्वास्थ्य की तस्वीर को समझने की पहली कड़ी है एक संपूर्ण फिजिकल चेक–अप। एक अनुभवी चिकित्सक आपके ब्लड प्रेशर, पल्स और हृदय की धड़कनों की प्रकृति देखकर प्रारंभिक संकेत पहचान सकता है। इसी मुलाक़ात में आपकी जीवनशैली और परिवार का रोग–इतिहास भी चर्चा में आता है—यहीं से आगे की जाँचों की दिशा तय होती है। इसके बाद खून की जाँचें यह बताती हैं कि शरीर में कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर कितना है, कहीं विटामिन–खनिजों की कमी तो नहीं, और हार्ट की मांसपेशियों पर किसी प्रकार के नुकसान के संकेत तो नहीं दिख रहे। यह सब मिलकर एक आधार तैयार करता है जिस पर डॉक्टर जोखिम का वस्तुनिष्ठ आकलन कर पाते हैं।
इसी क्रम में इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम, यानी ईसीजी, एक सरल लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण जाँच है। कुछ ही मिनटों में पूरी हो जाने वाली यह प्रक्रिया दिल की विद्युत गतिविधि दर्ज करती है। इससे अनियमित धड़कनें, रिद्म से जुड़ी गड़बड़ियाँ और कई बार छिपी हुई समस्याओं के संकेत सामने आ जाते हैं। अक्सर लोग सोचते हैं कि दर्द न हो तो ईसीजी की क्या ज़रूरत—लेकिन सच्चाई यह है कि कई जोखिम बिना दर्द दिए चुपचाप बढ़ते हैं, और ईसीजी उन्हें शुरुआती स्तर पर पकड़ने में मददगार साबित होता है।
हृदय की धमनियों पर पड़ रहे बोझ को समझने के लिए लिपिड प्रोफाइल एक अहम खिड़की खोलता है। इसमें एलडीएल (जिसे आम बोलचाल में ‘बैड कोलेस्ट्रॉल’ कहा जाता है), एचडीएल (‘गुड कोलेस्ट्रॉल’) और ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर सामने आता है। एलडीएल बढ़ने और एचडीएल घटने से धमनियों में प्लाक बनने की आशंका बढ़ती है, जो आगे चलकर ब्लॉकेज, हार्ट अटैक या स्ट्रोक का कारण बन सकती है। सही वक़्त पर मिली यह जानकारी डॉक्टर को जीवनशैली में बदलाव से लेकर दवा शुरू करने तक, आपके लिए उपयुक्त रास्ता चुनने में मदद करती है।
जाँचें केवल रिपोर्ट का पुलिंदा नहीं, बल्कि आगे की यात्रा का नक्शा हैं। यह नक्शा बताता है कि आपको कहाँ धीमा होना है, कहाँ दिशा बदलनी है और कहाँ रफ़्तार पकड़नी है। अगर रिपोर्ट में जोखिम उभरकर आए तो घबराने की ज़रूरत नहीं; यह दरअसल एक मौक़ा है—समय रहते निर्णायक कदम उठाने का। और यदि सब सामान्य हो, तब भी यह आश्वासन केवल तभी टिकाऊ है जब आप अपनी रोज़मर्रा की आदतों में दिल–दोस्त बदलाव अपनाएँ।
दिल की सुरक्षा का सबसे मज़बूत कवच रसोई में ही तैयार होता है। रोज़ की थाली में रंग–बिरंगे फल और हरी–पत्तेदार सब्जियाँ, साबुत अनाज, दालें, अंकुरित अनाज, मेवे और बीज दिल को मज़बूत आधार देते हैं। ओमेगा–3 युक्त खाद्य पदार्थ—जैसे अलसी के बीज, अखरोट या उपयुक्त मछलियाँ—सूजन को कम करने में सहायक माने जाते हैं। इसके उलट, चीनी से भरे पेय, बहुत तला–भुना खाना, अत्यधिक नमक, ट्रांस–फैट और प्रोसेस्ड मीट धमनियों के लिए खतरा बढ़ाते हैं। बात केवल “क्या खाएँ” की नहीं, “कैसे खाएँ” की भी है—धीरे–धीरे, समझ–बूझकर, भूख के संकेत सुनकर और प्लेट की मात्रा पर संयम रखकर।
आहार के साथ दो और आदतें दिल की उम्र बढ़ाती हैं—नियमित शारीरिक गतिविधि और नशे से परहेज़। रोज़ 30–45 मिनट तेज़ चाल से चलना, जॉगिंग, साइक्लिंग या कोई भी व्यायाम जो आपको आनंद दे, हृदय की मांसपेशियों को मजबूत करता है, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण में मदद करता है और तनाव हार्मोनों की पकड़ ढीली करता है। धूम्रपान और अत्यधिक शराब न केवल धमनियों को सख्त बनाते हैं, बल्कि दवाओं और जाँचों से मिलने वाले लाभ को भी कम कर देते हैं। इसलिए छोड़ना ही सबसे बड़ा इलाज है—और इसे आज ही शुरू किया जा सकता है।
तनाव आज हार्ट के लिए उतना ही बड़ा शत्रु है जितना खराब खान–पान। लंबी कार्यावधि, नींद की कमी, लगातार स्क्रीन टाइम और सामाजिक दबाव शरीर को हमेशा “चिंता मोड” में रख देता है। इसका असर दिल पर सीधे–सीधे पड़ता है। रोज़ कम–से–कम 7–8 घंटे की गुणवत्तापूर्ण नींद, दिन में छोटे–छोटे ब्रेक, गहरी साँस के अभ्यास, मेडिटेशन, प्राणायाम या योग जैसी साधनाएँ मन–मस्तिष्क को स्थिर करती हैं और दिल पर बोझ कम करती हैं। परिवार–मित्रों के साथ समय बिताना, अपने शौक़ों को जगह देना और “ना” कहना सीखना भी उतना ही ज़रूरी है—क्योंकि मानसिक संतुलन ही शारीरिक स्वास्थ्य की नींव है।
हृदय रोग से लड़ाई में सबसे बड़ा हथियार है—जागरूकता। अपनी उम्र चाहे जो हो, साल में एक बार बेसिक हेल्थ चेक–अप करवाना, डॉक्टर से खुलकर बातचीत करना और रिपोर्टों को समझना आपके निर्णयों को मज़बूती देता है। यदि छाती में भारीपन, असामान्य थकान, बाँह–जबड़े में फैलता दर्द, ठंडा पसीना, चक्कर, तेज़ अनियमित धड़कन या सांस फूलना जैसे संकेत मिलें तो इसे “काम की थकान” मानकर टालें नहीं—तुरंत चिकित्सकीय सलाह लें। कई ज़िंदगियाँ केवल इसलिए बच जाती हैं क्योंकि किसी ने सही वक़्त पर सतर्कता दिखाई।
अंततः, दिल की सेहत कोई एक दिन की मुहिम नहीं, यह जीवनशैली का चुनाव है। सही भोजन, नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद, तनाव–प्रबंधन, नशे से दूरी और समय–समय पर जाँच—ये छह स्तंभ आपके हृदय को वह सहारा देते हैं जिसकी उसे हर दिन ज़रूरत होती है। याद रखिए, हार्ट अटैक अक्सर “अचानक” लगता है, पर उसकी पटकथा सालों पहले लिखी जा चुकी होती है। आज लिए गए छोटे–छोटे फैसले आने वाले वर्षों में आपकी सबसे बड़ी सुरक्षा बन सकते हैं।
डिस्क्लेमर: यह सामग्री केवल जन–जागरूकता के उद्देश्य से है। किसी भी लक्षण या चिकित्सा निर्णय के लिए अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।

मैं अभिमन्यु कुमार पिछले चार वर्षों से गिरिडीह व्यूज में बतौर “चीफ एडिटर” के रूप में कार्यरत हुं,आप मुझे नीचे दिए गए सोशल मीडिया के द्वारा संपर्क कर सकते हैं।