छठ से पहले प्रांचीडीह गांव में छाया मातम, घंटों इंतजार के बाद भी नहीं पहुंचा 108 एम्बुलेंस..

छठ की खुशियों से पहले छा गया मातम,प्रांचीडीह गांव में 12 वर्षीय बच्ची की दर्दनाक मौत, सरकारी व्यवस्था पर उठे सवाल...

Abhimanyu Kumar
3 Min Read
Highlights
  • छठ पूजा से पहले गांव में दर्दनाक हादसा
  • 14 वर्षीय अंशु कुमारी की तालाब में डूबने से मौत
  • समय पर नहीं पहुंची सरकारी एंबुलेंस सेवा
  • निजी वाहन से पहुंचाया गया गिरिडीह सदर अस्पताल डॉक्टरों ने बच्ची को मृत घोषित किया
  • निजी वाहन से पहुंचाया गया गिरिडीह सदर अस्पताल डॉक्टरों ने बच्ची को मृत घोषित किया
  • सरकारी ‘आपातकालीन सेवा’ की पोल फिर खुली पूरे गांव में छठ की खुशियों पर छाया मातम
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  • घंटों इंतजार के बाद भी नहीं पहुंची एंबुलेंस, तालाब में डूबी मासूम की मौत
  • छठ से पहले प्रांचीडीह गांव में छाया मातम, स्वास्थ्य व्यवस्था पर उठे सवाल
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ठ पूजा की तैयारियों के बीच गिरिडीह जिले के जमुआ प्रखंड के मलूवाटांड़ पंचायत अंतर्गत प्रांचीडीह गांव में सोमवार को दर्दनाक हादसा हो गया। तालाब में नहाने के दौरान 14 वर्षीय अंशु कुमारी की डूबने से मौत हो गई। परिजनों के अनुसार, यदि एंबुलेंस सेवा समय पर पहुंच जाती, तो शायद उनकी बेटी की जान बच सकती थी।

घटना के बाद मचा हड़कंप

घटना दोपहर करीब दो बजे की बताई जा रही है। अंशु तालाब में नहाने गई थी, तभी अचानक गहरे पानी में चली गई। आसपास मौजूद बच्चों की चीख सुनकर ग्रामीण मौके पर पहुंचे और काफी मशक्कत के बाद बच्ची को बाहर निकाला। उस समय तक अंशु बेसुध हो चुकी थी।

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नहाने के दौरान तालाब में डूबने से 14 वर्षीय लड़की की दर्दनाक मौत…

एंबुलेंस का इंतजार करते रहे परिजन

ग्रामीणों ने तुरंत 108 एंबुलेंस सेवा पर कॉल किया। लेकिन एंबुलेंस आने में घंटे बीत गए। परिजनों ने बताया कि कई बार फोन करने के बावजूद कोई वाहन नहीं पहुंचा। अंततः लोगों ने निजी वाहन की व्यवस्था की और बच्ची को गिरिडीह सदर अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

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गांव में पसरा मातम

छठ पूजा की तैयारियों के बीच पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई। हर घर में जहां उत्सव की तैयारी थी, वहीं अंशु के घर पर मातम और सन्नाटा पसरा हुआ है। मां-बाप की हालत बेहाल है। ग्रामीणों ने सरकार से मांग की है कि एंबुलेंस सेवा में लापरवाही बरतने वालों पर कार्रवाई की जाए।

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प्रशासनिक उदासीनता पर उठे सवाल

ग्रामीणों ने कहा कि 108 एंबुलेंस सेवा को ‘आपातकालीन जीवन रक्षक सुविधा’ के रूप में प्रचारित किया जाता है, लेकिन ज़रूरत के समय यह सेवा फेल हो जाती है।

एक ग्रामीण ने कहा

अगर एंबुलेंस समय पर आती, तो शायद अंशु आज जिंदा होती। सरकार विज्ञापन पर लाखों खर्च कर रही है, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और है।

यह घटना न केवल एक परिवार की त्रासदी है, बल्कि झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी बड़ा सवालिया निशान छोड़ गई है। सरकारी वादों और योजनाओं के बीच एक मासूम की मौत ने सिस्टम की लापरवाही को बेनकाब कर दिया है।

 

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