रांची: देशभर में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर चिंताएं लगातार बढ़ रही हैं। केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी ताजा आंकड़ों ने झारखंड की शिक्षा व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आंकड़ों के अनुसार, झारखंड देश में तीसरे स्थान पर है जहां सबसे अधिक “एक शिक्षक वाले स्कूल” हैं।
शैक्षणिक वर्ष 2024–25 में झारखंड में 9,172 स्कूल ऐसे हैं जिनमें केवल एक शिक्षक कार्यरत हैं, जबकि इन स्कूलों में 4,36,480 से अधिक छात्र अध्ययनरत हैं। यानी औसतन एक शिक्षक सैकड़ों बच्चों को पढ़ाने के लिए मजबूर है।
देशभर में कुल 1,04,125 स्कूल ऐसे हैं जहां सिर्फ एक ही शिक्षक है, और इनमें 33.76 लाख से अधिक छात्र पढ़ रहे हैं। हालांकि पिछले वर्ष की तुलना में ऐसे स्कूलों की संख्या में कुछ कमी आई है, फिर भी यह आंकड़ा शिक्षा की जमीनी सच्चाई को उजागर करता है।
एकल शिक्षक वाले स्कूलों की सर्वाधिक संख्या आंध्र प्रदेश (12,912) में है, इसके बाद उत्तर प्रदेश (9,508) और तीसरे स्थान पर झारखंड (9,172) है।
शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की गंभीर चुनौतियों को दर्शाती है। शिक्षकों की भारी कमी, नियुक्तियों में विलंब और स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव छात्रों के भविष्य को प्रभावित कर रहा है।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि एक शिक्षक से कई कक्षाओं को एक साथ संभालना संभव नहीं है, जिससे पढ़ाई की गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ता है। राज्य के कई इलाकों में शिक्षक न होने से स्कूल केवल “नाममात्र” के लिए चल रहे हैं।
शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी बढ़ी
झारखंड शिक्षा विभाग के सामने अब बड़ी चुनौती यह है कि ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों में शिक्षकों की पर्याप्त तैनाती की जाए। नई नियुक्तियों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से ही इस स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।
अगर सरकार समय पर इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाती, तो राज्य के लाखों बच्चों की बुनियादी शिक्षा पर गंभीर असर पड़ सकता है।