मोतीलेदा पंचायत अंतर्गत लकठाही गाँव में चार वर्ष के लंबे अंतराल के बाद इस वर्ष बड़े ही श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ बड़का पर्व (डलिया पर्व) का आयोजन किया गया। रविवार की संध्या को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर इस पारंपरिक पर्व की विधिवत शुरुआत हुई। पूरे गाँव का माहौल धार्मिक भक्ति, लोक संस्कृति और एकता के रंगों से सराबोर दिखाई दिया।
स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि बड़का पर्व गाँव की अत्यंत प्राचीन परंपरा है, जिसे हर चार वर्ष में एक बार पूरे ग्रामवासी मिलकर मनाते हैं। इस पर्व को लेकर न केवल लकठाही बल्कि आसपास के गाँवों में भी विशेष उत्साह देखा गया। श्रद्धालुओं ने पूरे दिन उपवास रखा और संध्या में डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर परिवार की सुख-समृद्धि तथा गाँव की एकता की कामना की।
नवयुवक संघ लकठाही की रही अहम भूमिका
इस आयोजन की सफलता में नवयुवक संघ लकठाही की भूमिका अत्यंत सराहनीय रही। संघ के सभी सदस्य कई दिनों से तैयारियों में पूरी निष्ठा और उत्साह के साथ लगे हुए थे। गाँव की सड़कों की सफाई से लेकर घाट की सजावट, पानी की व्यवस्था, सुरक्षा और भीड़ नियंत्रण तक — हर जिम्मेदारी उन्होंने बखूबी निभाई।
संघ के सदस्यों ने मिलजुलकर आयोजन स्थल को सजाया और श्रद्धालुओं के लिए सभी आवश्यक व्यवस्थाएँ सुनिश्चित कीं। ग्रामीणों ने कहा कि युवाओं की मेहनत, एकता और समर्पण के बिना यह पर्व सफल नहीं हो सकता था।
इस अवसर पर ग्रामवासियों ने नवयुवक संघ के सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक धन्यवाद और आभार व्यक्त किया। युवाओं ने दिन-रात मेहनत कर इस पर्व को यादगार बना दिया।
भक्ति और लोकसंस्कृति का संगम
पर्व के दिन सुबह से ही पूरा गाँव उत्साह से भर उठा था। महिलाएँ पारंपरिक परिधानों में सजीं, तो पुरुष पूजा-पाठ की तैयारियों में जुटे रहे। गाँव की गलियाँ साफ-सुथरी कर सजाई गईं। दोपहर के बाद से ही घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।
सूर्यास्त के समय जब अर्घ्य देने की बेला आई, तब पूरा वातावरण “सूर्य देव की जय” के जयकारों से गूंज उठा। ग्रामीणों ने डलिया में चावल, दूब, पुष्प और अन्य पूजन सामग्री रखकर डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया। महिलाएँ लोकगीत गाते हुए पूजा में लीन रहीं — जिससे पूरे वातावरण में भक्ति और शांति का अनुपम संगम झलक रहा था।
ग्रामीणों ने अपनी स्वेच्छा से किया फल वितरण
इस अवसर पर कई ग्रामीणों ने अपनी स्वेच्छा से फल वितरण कर पुण्य का कार्य किया। छोटे-बड़े सभी लोग इस सेवा कार्य में शामिल हुए। किसी ने बच्चों में फल बाँटे तो किसी ने प्रसाद का वितरण किया। इससे गाँव में सामाजिक एकता, सहयोग और प्रेम का सुंदर संदेश प्रसारित हुआ।
एकता और सहयोग की मिसाल
लकठाही गाँव ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि जब उद्देश्य सामूहिक हो, तो किसी कार्य को सफल बनाने में कोई बाधा बड़ी नहीं होती। सभी वर्गों और उम्र के लोगों ने मिलजुलकर इस पर्व को मनाया। बुजुर्गों ने पारंपरिक विधियों का मार्गदर्शन किया, महिलाएँ पूजा की तैयारी में जुटीं, और युवा वर्ग ने आयोजन की बागडोर संभाली। यह सामूहिक सहयोग और सौहार्द का जीवंत उदाहरण बना।
श्रद्धा, परंपरा और आधुनिकता का सुंदर मेल
समय भले बदल गया हो, लेकिन बड़का पर्व जैसे पारंपरिक त्योहार आज भी ग्रामीण संस्कृति की पहचान हैं। इस पर्व के माध्यम से गाँव के लोग अपनी संस्कृति, लोक परंपरा और धार्मिक आस्था को जीवित रखते हैं।
नवयुवक संघ ने इस वर्ष आयोजन में स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया। युवाओं ने प्लास्टिक के उपयोग से परहेज़ करते हुए मिट्टी और पत्तों से बने बर्तनों का प्रयोग किया, जिससे पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया गया।
चार वर्ष बाद लौटी वही पुरानी रौनक
चार साल के अंतराल के बाद जब यह पर्व पुनः मनाया गया, तो पूरे गाँव में रौनक और ऊर्जा का माहौल था। बच्चे, महिलाएँ, बुजुर्ग — सभी में अपार उत्साह झलक रहा था। संध्या के समय जब सूर्य धीरे-धीरे पश्चिम में डूब रहा था और सभी ग्रामीण एक साथ अर्घ्य दे रहे थे, तो दृश्य अत्यंत मनमोहक और हृदयस्पर्शी बन गया।
ग्रामीणों ने बताया कि यह पर्व केवल पूजा नहीं, बल्कि आपसी संबंधों, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रतीक है। यह हमें यह संदेश देता है कि एकजुट होकर ही समाज को मजबूत और खुशहाल बनाया जा सकता है।