झारखंड की परीक्षा प्रणाली में बदलाव, 8वीं, 9वीं और 11वीं की मुख्य परीक्षाएँ होंगी मैट्रिक जैसी, 2027 से नई व्यवस्था शुरू…

Pintu Kumar
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रांची: झारखंड में स्कूल बोर्ड परीक्षाओं के ढांचे में महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है। विकास आयुक्त अजय कुमार सिंह की अध्यक्षता में सोमवार को हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया कि आठवीं, नौवीं और 11वीं की मुख्य परीक्षाएँ अब मैट्रिक (दसवीं) की तर्ज पर लिखित रूप में आयोजित की जाएंगी। यह नया पैटर्न शिक्षण-पद्धति और मूल्यांकन में समग्र बदलाव लाने के उद्देश्य से सत्र 2026-27 यानी 2027 से लागू किया जाएगा।

बैठक में मौजूद अधिकारियों ने बताया कि इस निर्णय तक पहुंचने का मुख्य कारण विद्यार्थियों को ओएमआर-आधारित परीक्षा से सीधे लिखित परीक्षा में अचानक होने वाली कठिनाइयों से बचाना है। शिक्षा सचिव उमाशंकर सिंह ने कहा कि आठवीं और नौवीं की ओएमआर-आधारित परीक्षा के बाद दसवीं में लिखित बोर्ड परीक्षा देने पर छात्रों को समस्या होती है। इसी तरह 11वीं में ओएमआर और 12वीं में लिखित परीक्षा के बीच के अंतर के कारण भी विद्यार्थियों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इसलिए इन कक्षाओं के लिए लिखित मूल्यांकन अपनाकर विद्यार्थियों को प्रारंभिक चरण से ही विस्तृत उत्तर देने की आदत डलाने का निर्णय लिया गया है।

हालांकि बदलाव तुरंत लागू नहीं होगा। बैठक में यह भी स्पष्ट किया गया कि 2026 में आयोजित होने वाली आठवीं, नौवीं और 11वीं की परीक्षाएँ पूर्ववत ओएमआर शीट पर ही ली जाएंगी और इनका आयोजन झारखंड एकेडमिक काउंसिल (जैक) करेगी। जैक ने समय की कमी का हवाला देते हुए 2026 से नए पैटर्न पर परीक्षा कराने में असमर्थता जताई थी, इसलिए संक्रमण-काल के लिए पुरानी पद्धति बरकरार रखी जा रही है। वहीं 2027 से इन परीक्षाओं का संचालन और नया परीक्षा पैटर्न — जिसमें वस्तुनिष्ठ के साथ-साथ लघु और दीर्घ उत्तरीय प्रश्न भी शामिल होंगे — अब झारखंड शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद (जेसीईआरटी) के दस्ते देखेंगे।

बैठक में माध्यमिक शिक्षा निदेशक राजेश प्रसाद, जेसीईआरटी के निदेशक शशि रंजन, जैक के अध्यक्ष डॉ. नटवा हांसदा तथा जैक के अन्य सदस्य और विभागीय अधिकारी उपस्थित थे। अधिकारियों ने बताया कि 2027 से प्रारंभिक स्तर पर विद्यार्थियों को विषयगत ज्ञान के साथ-साथ उत्तर संरचना, लंबाई और विश्लेषणात्मक क्षमता के लिहाज से तैयार करने की रणनीति अपनाई जाएगी। इसका मकसद केवल वस्तुनिष्ठ ज्ञान की परख नहीं, बल्कि समझ, लेखन क्षमता और तर्क प्रस्तुत करने की योग्यता भी आंका जाना है।

शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि नई व्यवस्था लागू होने पर प्रश्नपत्रों की गुणवत्ता, मूल्यांकन मानक और परीक्षक-प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। जेसीईआरटी के निदेशक शशि रंजन ने बैठक में आश्वस्त किया कि आवश्यकता अनुसार शिक्षकों और परीक्षकों के प्रशिक्षण के साथ प्रश्नपत्रों की तैयारी और मॉडरेशन के लिए पर्याप्त समय और संसाधन मुहैया कराया जाएगा ताकि 2027 से बदलाव प्रभावी और व्यवस्थित तरीके से लागू हो सके।

विद्यार्थियों और अभिभावकों की सुविधा और संक्रमण-काल को ध्यान में रखकर 2026 की परीक्षाएँ जैक करवा रहा है; इस दौरान स्कूल स्तर पर लिखित उत्तर लेखन की प्रैक्टिस को बढ़ावा देने के उपाय सुझाए जाएँगे। शिक्षा सचिव ने कहा कि जैक ने समय के अभाव को लेकर जो स्थिति जताई, उसे मद्देनज़र रखते हुए कदम उठाए गए हैं ताकि किसी भी तरह की विधिक या प्रशासनिक दिक्कत न आए और विद्यार्थियों का हित सुरक्षित रहे।

शिक्षा नीति के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि नई प्रणाली को शिक्षकों के प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम-समायोजन और समयबद्ध रूप से लागू किया जाए तो यह विद्यार्थियों की समग्र शैक्षणिक क्षमता को बढ़ा सकती है। दूसरी ओर कुछ स्कूल-परिसर और अभिभावक इस परिवर्तन पर चिंतित भी हैं कि क्या अचानक से प्रश्नोत्तर शैली बदलने पर विद्यार्थियों की मनोवैज्ञानिक तैयारी, परीक्षा-प्रबंधन और अंक वितरण के मापदंड कितने पारदर्शी और विश्वसनीय रहेंगे। इसीलिए विभाग ने यह स्पष्ट किया है कि संक्रमण-काल, मूल्यांकन मानक और प्रश्नपत्रों की मॉडरेशन जैसे बिंदुओं पर विस्तृत रूपरेखा तैयार की जाएगी और संबंधित पक्षों से परामर्श कर के ही अंतिम रूप दिया जाएगा।

राज्य सरकार की ओर से किए गए इस ऐतिहासिक निर्णय का उद्देश्य स्पष्ट है — प्रारंभिक स्तर से ही विद्यार्थियों में विस्तारपूर्वक लिखित उत्तर देने की आदत, विश्लेषण और सोचने-समझने की क्षमता को विकसित करना ताकि वे उच्चस्तरीय बोर्ड परीक्षाओं के लिए सहज रूप से तैयार हो सकें। अब यह देखने वाली बात होगी कि 2026 के दौरान विभाग और संबंधित संस्थान कितनी तत्परता से तैयारियाँ करेंगे और 2027 में लागू होने वाला नया पैटर्न किस तरह से शिक्षण-व मूल्यांकन प्रणाली को स्थायीत्व प्रदान करता है।

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