झारखंड विधानसभा चुनाव Result: झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम: ‘मंईयां सम्मान योजना’ का जादू, ‘घुसपैठ’ का मुद्दा बेअसर

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झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे कुछ घंटों में साफ हो जाएंगे, लेकिन शुरुआती रुझानों ने सियासी माहौल गर्मा दिया है। पहले एनडीए आगे थी, लेकिन अब इंडिया गठबंधन ने बढ़त बना ली है। दोपहर तक रुझानों में इंडिया 51 सीटों पर और भाजपा 29 सीटों पर आगे चल रही थी। अगर ये रुझान नतीजों में बदलते हैं, तो झारखंड के इतिहास में यह पहली बार होगा जब किसी गठबंधन सरकार की सत्ता में वापसी होगी।

‘मंईयां सम्मान योजना’ बनी गेमचेंजर?

रुझानों से संकेत मिलता है कि मंईयां सम्मान योजना ने पारंपरिक वोटिंग पैटर्न को प्रभावित किया है। माना जा रहा है कि महिलाओं ने बड़ी संख्या में झामुमो और उसके गठबंधन को वोट दिया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अगुआई में इंडिया गठबंधन ने चुनाव प्रचार के दौरान महिलाओं के लिए इस योजना को मुख्य मुद्दा बनाया।

भाजपा ने भी गोगों दीदी योजना के जरिए महिलाओं को आकर्षित करने की कोशिश की और हर महीने ₹2100 की सम्मान राशि देने का वादा किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह जैसे दिग्गज नेताओं ने इस वादे को हर रैली में दोहराया, लेकिन मतदाताओं ने झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन को तरजीह दी।

‘घुसपैठ’ और ‘बंटोगे तो कटोगे’ नहीं भाया जनता को

चुनाव के दौरान भाजपा ने बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। पार्टी ने आरोप लगाया कि आदिवासी इलाकों, खासकर संथाल परगना, में घुसपैठियों की वजह से जनसांख्यिकी बदल रही है। इसके साथ ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘बंटोगे तो कटोगे’ का नारा दोहराया, लेकिन ये मुद्दे जनता के बीच खास असर नहीं दिखा पाए।

संथाल परगना जैसे इलाकों में भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ सकता है, जहां झामुमो की पकड़ मजबूत बनी हुई है। झामुमो ने भाजपा के आरोपों को सांप्रदायिक राजनीति करार दिया और इसे केंद्र सरकार की विफलता बताया।

हेमंत सोरेन की वापसी का संकेत

अगर रुझान नतीजों में बदलते हैं, तो हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड में गठबंधन सरकार की वापसी होगी। यह न सिर्फ झारखंड की राजनीति में बल्कि भारतीय राजनीति में भी एक अनोखी घटना होगी। इंडिया गठबंधन के इस प्रदर्शन से झारखंड में भाजपा को बड़ा झटका लग सकता है।

आखिरी नतीजों का इंतजार अब पूरे देश की नजरों में है। क्या झारखंड में विकास और महिला सशक्तिकरण की राजनीति ने सांप्रदायिक मुद्दों को मात दे दी है? इसका जवाब जल्द ही मिलेगा।

 

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