गिरिडीह:बीते शनिवार पूर्व केंद्रीय मंत्री सरदार बूटा सिंह का आकस्मिक निधन हो गया।जिससे जिला काँग्रेस कमिटी गिरिडीह गमगीन है।माननीय जिलाध्यक्ष ने बुटा सिंह जी को याद करते हुए बताया कि पूरा काँग्रेस परिवार उनका ऋणी है। उनके निधन से सदमे में है ईश्वर से मेरी यही कामना है कि उनके आत्मा को शांति मिले व उनके परिजनों को इस सदमे से उबरने की शक्ति प्रदान करे।उनकी पूर्ति पार्टी व समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
राजनीतिक सफर
1989 में बूटा सिंह चुनाव हार गए लेकिन 1991 में फिर जीते। इसके बाद वे फिर रोपड़ से चुनाव हारे। 1998 में उन्हें टिकट नहीं दी गई। वे राजस्थान के जालौर से आजाद लड़े और रिकॉर्ड 1.65 लाख वोटों से जीते थे। सोनिया गांधी के कांग्रेस प्रधान बनने के बाद वापस आए और 1999 में जालौर से फिर सांसद चुने गए। इस दौरान वे पब्लिक अकाउंट कमेटी के चेयरमैन रहे। 2004 में चुनाव से पहले उनका एक्सीडेंट हो गया। पंजाब की राजनीति में उनका नाम कई बार उछला कि वह सीएम पद के प्रबल दावेदार हैं लेकिन वह मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाये।
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बूटा सिंह सबसे पहले अकाली दल की टिकट पर 1962 में मोगा से सांसद बने थे। फिर 1967 में वे दोबारा यहां से जीते। 1971 में रोपड़ सीट से कांग्रेस की टिकट पर जीत हासिल की। 1975 में भारत सरकार में उन्हें डिप्टी रेलवे मंत्री बनाया। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे एससी कोटे की करीब 50 हजार पद भरवाए थे।
1977 में वे चुनाव हार गए थे। 1980 में वे रोपड़ से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते। 1982 में उन्हें एशियन गेम्स का प्रभारी भी बनाया गया। इंदिरा गांधी की मौत के बाद बूटा सिंह राजीव गांधी के करीब हो गए।
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