गावां के चैती दुर्गा पूजा आज भी पूरे जिलेभर में सुविख्यात है
गावां, गिरिडीह
गावां के चैती दुर्गा पूजा आज भी पूरे जिलेभर में सुविख्यात है। यंहा के कुछ धार्मिक धरोहर सदियों से लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बना रहा है। इन्हीं में अब भी अव्वल है यहां का अदभुद शिल्पकला से निर्मित खूबसूरत गावां कालीमंडा। कालीमंडा का निर्माण 18वीं सदी के पूर्वाध में गावां के तत्कालीन टिकैत पुहकरण नारायण सिंह ने कुशल कारीगरों से कराया था। मंडप का भवन लगभग 25-30 फीट ऊंचा एवं 60 लंबा है। मंडप के सामने विस्तृत भू-भाग पसरा है। इसके दीवारों के प्लास्टर में सुर्खीचुना, बेल का गुदा, गुड़ , उड़द, शंख एवं सीपियों के पानी के मिश्रण का प्रयोग किया गया था। यही कारण है कि दीवारें आज भी समतल व चिकनी दिखाई देती है। मंडप के पूर्वी भाग में एक बड़ा हॉलनुमा कमरा में गावां राजघराने द्वारा कोलकाता से दक्षिणेश्वर मां काली को विधि विधान से स्थापित किया गया था, तभी से संपूर्ण मंडप को काली मंडा कहा जाने लगा। इस कमरे में सिर्फ राजघराने के लोग, मुख्य आचार्य, उनके समर्थक एवं नाई ही प्रवेश करते हैं। कमरे में लगभग पांच फीट ऊंचे व तीन फीट चौड़े बेल्जियम मोटे ग्लास से निर्मित दो भव्य आईने रखे हुए हैं। इन आइनो को दुर्गा पूजा के क्रम में बाहर निकाल कर मां दुर्गा प्रतिमा के अगल-बगल में रखा जाता है। मंडप के ऊपरी भाग में छह वर्ष पूर्व सीमेंट से निर्मित मां दुर्गा की आकर्षक मूर्ति भी बनाई गई है जो अति शोभनीय है। मंदिर परिसर के चारो ओर फूल-पौधा भी लगाया गया है। मंदिर परिसर के भू-भाग में एक शिवमंदिर भी है।
*अनोखी थी बेलभरनी पूजा महोत्सव*
सन् 70 के दशक तक यहां की पूजन महोत्सव बिल्कुल अनोखी थी। माता बेलभरनी को न्योता देने संध्या काल के समय चार फीट के चांदी से निर्मित व आठ-दस फीट के हाथी, घोड़े एवं सात फीट के लंबे स्तूप सजते थे। जिन्हें गावां के युवकों की टोली सपने कांधो पर लेकर ढोलबाजे के साथ निकलते थे। फिर माता को लाने के समय माता की डोली को ऊपर बारह फीट ब्यास का जरीदार छाता होता था। छाते की लंबी डंडी भी चांदी की बनी हुई रहती थी।
*गावां में कैसे शुरू हुई चैती दुर्गा पूजा*
गावां में पूर्व में सिर्फ शारदीय दुर्गा पूजा का प्रचलन था, पर 19वीं सदी के प्रारंभिक काल में जब गावां के नौकी आहार में मूर्ति विसर्जन के पश्चात लोग पटरा लाने के लिए गए तो उठा नहीं पाए। उसी कालखंड में संपूर्ण गावां क्षेत्र में प्लेग जैसी घातक बीमारी ने महामारी का स्वरूप धारण कर लिया था। जिससे उसमय लोगों की मृत्युदर में काफी इजाफा होने लगा। तभी गावां के तत्कालीन टिकैत ने अपना हाथी मंगवाया पर विशालकाय गजराज भी पटरा को टस से मस नहीं कर पाया। तभी टिकैत को मां दुर्गा द्वारा स्वपनादेश हुआ कि अब तुम्हें चैती दुर्गा पूजन भी करनी होगी। जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। जिसके बाद लोग आसानी से पटरा उठा ले आए और प्लेग महामारी भी धीरे-धीरे समाप्त हो गई।
*विधि विधान से होती है चैती दुर्गा पूजा*
गावां में चैती दुर्गा पूजन बड़े विधि विधान से होती आ रही है। पूजा में राजपरिवार के वरिष्ठ सदस्य स्वयं बैठते हैं जो पूजन के दौरान चौदस कोस (यानी) गावां, तिसरी की जनता के सुख शांति संवृद्धि की माता से कामना करते हैं। वर्तमान में मुख्य आचार्य भवेश मिश्रा व उनके सहायक स्वरूप अवध किशोर पांडेय है। बता दें कि 60 के दशक तक पूजा का खर्च राजपरिवार उठाता था। बाद में यह सार्वजनिक कमेटी के द्वारा होता है। पूजा के दिनों पूर्व में तीन-चार दिनों का गहमागहमी भरा मेला लगता है।
संवाददाता :-रणवीर कुमार