Mental Health: मानसिक स्वास्थ्य का रखें ख्याल, जानिए खुशियों के लिए दवाएं कितनी कारगर


Medicine For Mental Health: शांति, मन की प्रसन्नता से होती है, लेकिन कई विदेशी विद्वानों ने इसे दवाओं यानी ड्रग्स के जरिये पाने की कोशिश की। सवाल यह है कि क्या किसी दवा के जरिये शांति और खुशी को पाया जा सकता है? जीवन में हम सभी खुशियां चाहते हैं। हमारा हर कर्म प्राय: इसी उद्देश्य से किया जाता है कि अंतत: हमें प्रसन्नता मिले। शायद हम और आप सच्ची खुशी का अर्थ यही समझते हैं। किसी बात से मन का खुश हो जाना एक सामान्य-सी बात है। लेकिन कम लोग ही जानते हैं कि आंतरिक खुशी हमारे लिए ज्यादा महत्व रखती है और यह आंतरिक खुशी तभी आती है, जब हमारा मन खुश हो। मस्तिष्क शांत हो। आंतरिक या सच्ची खुशी का अनुभव करने के लिए तन, मन और दिमाग, तीनों की संतुलित अवस्था की आवश्यकता होती है।

आज की इस तनाव और भागमभाग वाली जिंदगी में इसे अनुभव करना एक दुष्कर कार्य है, जिसकी खोज में लोग अलग-अलग दिशाओं में दौड़ लगा रहे हैं। खुशी तो हमें किसी भी स्रोत से मिल सकती है, लेकिन सच्ची खुशी हमारे अंदर ही होती है। अफसोस कि आज कुछ लोग इसे अपने अंदर ढूंढने की जगह बाहरी स्रोतों में तलाश रहे हैं, दवाओं पर निर्भर होते जा रहे हैं।

बीसवीं सदी के सुप्रसिद्ध लेखक एल्डस लियोनार्ड हक्सले तक इसी भ्रम में रहे कि “एलएसडी (लिसर्जिक एसिड डाईएथिलेमाइड) दवा द्वारा आप उस आध्यात्मिक अनुभूति को पा सकते हैं, जिसे गौतम बुद्ध, महात्मा कबीर और गुरु नानक देव ने प्राप्त किया था।” उन्होंने अपनी पुस्तक ‘हेवन एंड हेल’ में यहां तक लिख दिया है कि “भविष्य में विज्ञान द्वारा कृत्रिम रूप से निर्मित दवाओं का असर बिल्कुल वैसा ही होगा, जैसा कि वेदों में सोमरस का प्रभाव था। हममें से सभी सोमरस शब्द से परिचित हैं। हक्सले के अनुसार, प्राचीन काल में जिस तरह सोमरस द्वारा स्वस्थ, युवा शरीर और प्रसन्नता को पाया जाता था, उसी तरह भविष्य में एलएसडी दवाओं द्वारा प्रसन्नता को पाया जा सकेगा।”

अब यह केवल उनकी अतिश्योक्ति थी या भविष्यवाणी, यह तो अध्ययन और अनुभव की बात है, क्योंकि आज हजारों युवा नशीली दवाओं के सेवन के कारण जेल में बंद हैं। सच्ची खुशी, आंतरिक शांति और संतुष्टि, ये सब अद्भुत चीजें हैं, जिनको किसी भी तरह की कृत्रिमता से नहीं पाया जा सकता। आध्यात्मिक विचारक आचार्य रजनीश कहते हैं, “मैं इस बात को इस साधारण दुनिया से परे एक ऐसी खोज के तौर पर देखता हूं, जो कि गलत तरीके से की जा रही है, क्योंकि यह लोगों को वास्तविकता से दूर कर देती है।

दवा का असर खत्म होने पर

कुछ घंटों बाद जब दवाओं का असर खत्म होने लगता है तो उन्हें पुन: उसे इंजेक्ट करने की आवश्यकता पड़ती है। इस तरह धीरे-धीरे लोग दवाओं यानी ड्रग्स के शिकंजे में आसानी से फंसते चले जाते हैं। साथ ही जितनी बार वे इसे इंजेक्ट करते हैं, उनकी दवाओं पर निर्भरता बढ़ती चली जाती है।

अत: अनुभव करने के लिए उन्हें लगातार इसकी मात्रा बढ़ाते रहने की जरूरत पड़ती है।” युवाओं को ड्रग्स की ऐसी लत लग जाती है कि वे इसके लिए जेल तक जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। ओशो कहते हैं, “मैं इसे युवाओं की दिशाहीनता के रूप में देखता हूं, क्योंकि उन्हें यह बताने वाला कोई नहीं है कि दवाओं के सेवन से उनकी किसी भी इच्छा की संतुष्टि होना असंभव है। केवल ध्यान, शांति और विचारों की उत्कृष्टता द्वारा संतुष्टि और प्रशंसा को पाया जा सकता है। यह उन्हें समझने और समझाने की आवश्यकता है।”

गलतियों पर प्यार और बड़ों के समय की जरूरत

युवाओं को उनकी गलतियों पर सजा की जगह प्यार से समझाने की जरूरत होती है। बड़ों को चाहिए कि वे उनके लिए समय निकालें। ओशो आगे कहते हैं, “मैं युवाओं से एक ही अनुरोध करता हूं कि वे ज्यादा से ज्यादा ध्यान केंद्रित करें। ध्यान के अभाव में सत्य की खोज केवल एक भ्रम है, स्वप्न है और फिर स्वप्न तो स्वप्न ही होते हैं। किसी जिज्ञासा की खोज स्वागत योग्य पहल तो है, लेकिन उसके लिए सही निर्देश देने की आवश्यकता है।”

आज सभी को स्वयं के बारे में जानने की जरूरत है। अपनी वास्तविक शक्तियों को जानने की जरूरत है और यह सुखद है कि लोग जानना भी चाह रहे हैं। आज नहीं तो कल वे भी अपने बच्चों को सही दिशा देने में सक्षम हो पाएंगे। ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने ध्यान द्वारा दवाओं की लत से मुक्ति पाई है। जैसे-जैसे वे ध्यान को अपने जीवन का हिस्सा बनाते गए, उनके ड्रग्स की लत छूटती चली गई। अब उन्हें किसी दवा की आवश्यकता नहीं है, न कोई सजा, न जेल, बस एक सही निर्णय उन्हें इस लत से बाहर निकाल लाया। आपका अस्तित्व-बोध आपको प्रेम, शांति, सत्य आपके स्वयं के होने के भाव से समृद्ध कर सकता है, जिसके बाद आपको कुछ भी और पाने की इच्छा नहीं रहेगी।


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