मन्नत पूरी होने पर की गई थी मंदिर की स्थापना, 43 वर्षों से हो रहा है पूजा का आयोजन, न बदले पुजारी न मूर्तिकार


 जमुआ: पूरे देश में दुर्गा पूजा की तैयारी जोरों से चल रही है. क्षेत्र में जगह-जगह पूज पंडाल व मूर्ति निर्माण में कारीगर जुटे हैं. वहीं कई ऐसे जगह भी हैं जहां पूजा का आयोजन वर्षों से ऐतिहासिक रूप में होता आ रहा है. बता दें कि जमुआ प्रखंड का चित्तरडीह गांव का नाम भव्य आयोजन में शामिल है. यहां पिछले 43 सालों से दुर्गा मां विराजमान हो रही हैं.
1981 में बना यह मंदिर आज भी श्रद्धा का केंद्र हैं।।।।

 1981 में हुआ मंदिर का निर्माण

वर्षों  से हो रही इस आयोजन पर ग्रामीण बताते हैं कि मंदिर की स्थापना वर्ष 1981 में चितरडीह से ताल्लुक रखने वाले स्व बद्री नारायण प्रसाद ने कराया है. इसकी जानकारी के लिए गिरिडीह व्यूज के प्रतिनिधि ने उनके पुत्र नवीन कुमार सिन्हा से जानकारी ली. तो उन्होंने बताया कि मंदिर की स्थापना पिता जी ने कराया है. तब से अनवरत मां की पूजा-अर्चना के लिए प्रतिदिन भक्त पहुंचते हैं. वहीं दुर्गा पूजा के दौरान हजारों की संख्या श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है.

 वर्षों से हो रहे पूजा के आयोजन में न बदले पुजारी न मूर्तिकार

समिति अध्यक्ष ने बताया कि मंदिर की स्थापना होने के बाद से ही पंडित रघुनंदन पाठक द्वारा मां की पूजा-अर्चना कर रहे हैं. हालांकि, पिछले साल उनके देहांत के उपरांत इस बार से उनके पुत्र रिंकू पाठक को इसकी जिम्मेदारी दी गई है. साथ ही नवाडीह के भूषण राणा मूर्तिकार भी मां को लुभावन रूप देने में अपने प्रतिभा के प्रदर्शन में जुट गए हैं. भूषण राणा विगत 43 सालों से लुभावन रूप देते रहे हैं।
इनके द्वारा ही वर्ष 1981 में किया गया था मंदिर का स्थापना..

मंदिर की स्थापना को लेकर है रोचक तथ्य

ग्रामीण बताते हैं कि चित्तरडीह निवासी स्व बद्री नारायण प्रसाद ने मां से मन्नत मांगी थी कि यदि उनके बड़े पुत्र कृषकिशोर प्रसाद इंजीनियर बन जाते तो हैं तो मां की मंदिर निर्माण कर पूजा अर्चना की जायेगी. फलस्वरूप मां ने उसकी प्रार्थना सुन ली और कृष किशोर इंजीनियर बन गये. तत्पश्चात मंदिर निर्माण हुआ और मेले भी लगने लगे. तब से ही हजारों की संख्या में भक्त मां की पूजा में शामिल होते हैं. लोगों का मानना है कि जो भक्त श्रद्धा में मां की दरबार में हाजिरी लगाते हैं, वह कभी खाली हाथ नहीं लौटते. यहां दूर-दराज से भी श्रद्धालु मत्था टेकने आते हैं.

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