गिरिडीह में पार्श्वनाथ महोत्सव का 7वां वार्षिक आयोजन हर्षोल्लास के साथ संपन्न

Abhimanyu Kumar
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जमुआ विधायक डॉ.मंजू कुमारी।
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गिरिडीह। विश्व अहिंसा नगरी गिरिडीह में ‘वसुधैव कुटुंबकम’ और ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ के सिद्धांतों को मूर्त रूप देने वाले पार्श्वनाथ महोत्सव का 7वां वार्षिक आयोजन 31 दिसंबर 2024 को साइंस वर्ल्ड सभागार में संपन्न हुआ। पी.आई.यू. ट्रस्ट के तत्वावधान में आयोजित इस महोत्सव ने साहित्य, कला, और संस्कृति को एक मंच पर लाकर अद्भुत समागम प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने के लिए मुख्य अतिथि जमुआ विधायक डॉ. मंजू कुमारी, अति विशिष्ट अतिथि एसडीओ सुभाशीष, और विशिष्ट अतिथि उदय शंकर उपाध्याय सहित कई गणमान्य हस्तियां उपस्थित रहीं। आयोजन में कवि-कवयित्री, साहित्यकार, शिक्षाविद, और कलाकारों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

महोत्सव का शुभारंभ माँ सरस्वती और भगवान शिव की वंदना से हुआ। मंच संचालन ओज कवि विशाल पंडित ने अपने प्रभावशाली अंदाज में किया। महोत्सव में लोक शिक्षा, साहित्य, और सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करने के उद्देश्य से भारत के विभिन्न प्रांतों के साहित्यकार और कलाकार ऑनलाइन जुड़े।

कार्यक्रम के दौरान ‘विश्व सनातन विश्वविद्यालय निर्माण आंदोलन’ की मशाल प्रज्वलित की गई। इस ऐतिहासिक पहल को जोरदार समर्थन मिला। ट्रस्ट संस्थापक डॉ. सुरेश वर्मा और अध्यक्ष दिनेश्वर वर्मा ने विश्वविद्यालय निर्माण के संघर्ष और योगदान को याद करते हुए सभी को एकजुट होने का आह्वान किया।

मुख्य अतिथि डॉ. मंजू कुमारी ने महोत्सव के अनवरत योगदान की सराहना की और इसे एक नए युग की शुरुआत बताया। उन्होंने 2018 में आयोजित पहले महोत्सव में भी अपनी भागीदारी को याद किया।

धनबाद की पूर्णिमा सुमन ने अपनी मधुर गायकी से माहौल को प्रेममय बना दिया। गिरिडीह और अन्य जिलों के कवियों ने काव्यांजलि प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। वरिष्ठ साहित्यकार उदय शंकर उपाध्याय, विशाल पंडित, नेतलाल यादव, और सुरेश वर्मा समेत कई रचनाकारों ने अपनी रचनाओं से कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की।

साहित्यकारों और कलाकारों को ‘पार्श्व साहित्य सम्मान’ और स्मृति चिह्न प्रदान किए गए। सुरेश वर्मा की कविता “तुम रोये थे या बापू रोई थी माँ भारती” ने विभाजन के दर्द को नए सिरे से महसूस कराया।

महोत्सव का समापन विशाल पंडित के धन्यवाद ज्ञापन और उद्देश्य पर प्रकाश डालने के साथ हुआ। कार्यक्रम के दौरान गिरिडीह में विश्वविद्यालय निर्माण आंदोलन के सात वर्षों की यात्रा को भी विशेष रूप से याद किया गया।

पार्श्वनाथ महोत्सव ने साहित्य, कला, और सामाजिक एकता का प्रतीक बनते हुए गिरिडीह के विकास में एक नई ऊर्जा का संचार किया। ट्रस्ट के प्रयासों से यह आयोजन न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना रहा है।

 

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