गिरिडीह: डुमरी से JLKM के विधायक जयराम महतो एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस बार मामला उनकी नई एस-11 स्कॉर्पियो (JH-10DB-1947) गाड़ी से जुड़ा है, जिसे लेकर सोशल मीडिया पर बहस तेज हो गई है। आलोचकों का कहना है कि जो विधायक आम जनता जैसा जीवन जीने की बात करते थे, उन्होंने आखिर खुद के नाम पर गाड़ी क्यों खरीदी?
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, झारखंड विधानसभा के पहले सत्र में जयराम महतो ने जोर देकर कहा था कि उन्हें विधायक भत्ता नहीं चाहिए, और सभी विधायकों को सरकारी आवास की बजाय क्वार्टर में रहना चाहिए। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी सुझाव दिया था कि विधायकों को आम जनता की तरह सरकारी बसों से विधानसभा आना चाहिए। लेकिन अब, जब उनके नाम पर एक नई स्कॉर्पियो गाड़ी खरीदी गई है, तो उनकी कथनी और करनी के बीच विरोधाभास को लेकर सवाल उठ रहे हैं।
विधायक की सफाई
जब इस बारे में विधायक जयराम महतो से सवाल किया गया, तो उन्होंने स्पष्ट किया कि विधायक भत्ता प्राप्त करने के लिए उनके नाम पर गाड़ी होना आवश्यक है, इसलिए उन्होंने यह गाड़ी खरीदी। उन्होंने आगे कहा कि यह गाड़ी जनता की सेवा के लिए उपयोग की जाएगी।
इसके अलावा, उन्होंने यह भी घोषणा की कि वे फरवरी और मार्च महीने की अपनी सैलरी का 75% हिस्सा उन छात्र-छात्राओं को देंगे, जो मैट्रिक और इंटर की परीक्षाओं में डुमरी के मेरिट लिस्ट में टॉप-10 में स्थान प्राप्त करेंगे।
सोशल मीडिया पर उठे सवाल
हालांकि, विधायक की सफाई के बावजूद सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठा रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि विधायक अपने ही बयानों के विपरीत काम कर रहे हैं। इससे पहले भी बोकारो में बीएसएल क्वार्टर से संबंधित मामलों और विधानसभा सत्र के दौरान पत्रकारों के साथ व्यवहार को लेकर वे सुर्खियों में रह चुके हैं।
जनता की प्रतिक्रिया
इस पूरे मामले को लेकर जनता की मिली-जुली प्रतिक्रिया सामने आ रही है। कुछ लोग विधायक की ईमानदारी की सराहना कर रहे हैं, जबकि अन्य उनकी कथनी और करनी में अंतर को लेकर सवाल उठा रहे हैं।
क्या नेताओं की कथनी और करनी में समानता जरूरी?
यह विवाद एक बड़े सवाल को जन्म देता है – क्या नेताओं को वही जीवन जीना चाहिए, जिसकी वे सार्वजनिक मंचों पर वकालत करते हैं? जयराम महतो की स्कॉर्पियो पर विवाद यह दर्शाता है कि सार्वजनिक जीवन में नेताओं की कथनी और करनी में सामंजस्य होना बेहद जरूरी है, ताकि जनता का विश्वास बना रहे।