सामंजस्य के सबसे बड़े प्रतीक “शिव”- लेखक बृजेश कुमार पांडे


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जहां सत्य है, वहां शिव है और जहां शिव है वहां सुंदरता है! शिव का शाब्दिक अर्थ है उच्चतर चेतना! शिवरात्रि का पर्व शिव तत्व का ज्ञान हासिल करने के लिए मनाया जाता है ! इसके बाद का समय इस ज्ञान के उपयोग का है ! शिव तत्व का पहला संदेश है कि कैसी भी परिस्थिति हो, सफलता चाहिए तो सबमें सामंजस्य बनाकर रखना सीखिए !

सत्कर्मों द्वारा व्यक्तित्व को निखारा जा सकता है! हमारे सामने भगवान शिव का उदाहरण है.!परम देव सदाशिव या तो समाधि में आत्मचिंतन की मुद्रा में दिखते हैं या फिर समाधि के बाहर जन-कल्याणकारी कार्यों में ! यही भाव हमारे जीवन का भी होना चाहिए!

हम आत्मनिरीक्षण को अपनी दिनचर्या का अंग बनाएं और लोगों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहें.शिवजी के मस्तक पर चंद्रमा इस बात का प्रतीक है कि अपने मस्तिष्क को शांत रखें!

जटाओं से निकलती गंगा का तात्पर्य – कोई समर्थवान हो, उसे स्वयं पर नियंत्रण हो और वह दूसरों के दुर्गुणों रूपी विष को सोखकर, ठंडे दिमाग से समाज और परिवार में सामंजस्य बनाए रखने का प्रयास करता है, उसका व्यक्तित्व ऐसा प्रखर हो जाता है कि गंगा जैसी जीवनदायिनी शक्तियां स्वयं उसे प्राप्त हो जाती हैं!

जब नदी गंगा धरती पर आई, तो कोई भी उसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था, फिर से भगवान शिव ने उसे अपनीे जटाओं में जगह दी (कोई भी व्यक्ति शिव को छोड़कर नदी गंगा के वेग को बर्दाश्त नहीं कर सकता)

जिन्हें कोई स्थान और सहारा नहीं दिया उन सबको शिव ने आश्रय और स्थान दिया सर्प से लेकर विष तक! शिवजी का वाहन नंदी जो वृषभ हैं वह धर्म का प्रतीक हैं, वहीं भगवती पार्वती का वाहन शेर शक्ति का प्रतीक है! दोनों एक दूसरे के विरोधी, किंतु गजब का सामंजस्य! शिव के कंठ में सर्पों की माला है तो पुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है. मयूर सर्प का दुश्मन है, तो गणेश के वाहन चूहे का दुश्मन शिवजी के गले में लटका सर्प है!

सब विपरीत स्वभाव के हैं, लेकिन शिव के सामने अनुशासित रहते हैं आपस में सामंजस्य बनाए रखते हैं! यह संदेश है कि जो व्यक्ति विरोधी स्थितियों में सामंजस्य बना लेता है, उसका ही जीवन सफल है! यही गुण परिवार को भी सफल बनाता है, समाज को और देश को भी!

शिवजी ने हलाहल कंठ में रख लिया, गले के नीचे नहीं उतरने दिया ! सांसारिक विष यानी दुख-कठिनाइयों को गले से नीचे नहीं उतारना चाहिए ! कठिनाइयों का भान तो हो, पर उन्हें बहुत महत्व नहीं देना चाहिए।

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