झारखंड में शिक्षा का मौजूदा परिदृश्य चिंताजनक है। स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में लगभग 17.25 लाख बच्चों का स्कूल छोड़ने के बाद कोई अता-पता नहीं है। इन बच्चों को ‘ड्रॉप बॉक्स’ में रखा गया है, जो स्कूल छोड़ने वाले बच्चों का सरकारी डेटाबेस है। यह समस्या शिक्षा के अधिकार और बच्चों के भविष्य पर सवाल खड़े करती है।
ड्रॉप बॉक्स में 17 लाख बच्चे
शिक्षा विभाग की ताजा रिपोर्ट में वर्ष 2023-24 और 2024-25 के आंकड़े चिंताजनक हैं। वर्ष 2023-24 में 6,84,035 और 2024-25 में 10,41,123 बच्चे ड्रॉप बॉक्स में दर्ज किए गए हैं। ड्रॉप बॉक्स में होने का अर्थ है कि इन बच्चों ने स्कूल छोड़ने के बाद किसी अन्य विद्यालय में नामांकन नहीं लिया।
समस्या की पहचान और समाधान का प्रयास
राज्य के शिक्षा विभाग द्वारा ऐसे बच्चों की पहचान के लिए प्रयास जारी हैं। प्रति वर्ष शिशु पंजी अपडेट के दौरान शिक्षक घर-घर जाकर बच्चों की नामांकन स्थिति की जानकारी लेते हैं। जिलास्तर पर भी नामांकन के लिए समय-समय पर अभियान चलाए जाते हैं। बावजूद इसके, ड्रॉप बॉक्स में दर्ज बच्चों की संख्या बढ़ रही है।
ड्रॉपआउट या पहचान बदलने की संभावना
विशेषज्ञों का मानना है कि अधिकांश बच्चे स्कूल छोड़ने के बाद ड्रॉपआउट हो चुके हैं। हालांकि, संभावना यह भी है कि कुछ बच्चों ने अपनी पहचान बदलकर नए नाम से नामांकन लिया हो। लेकिन ऐसी स्थिति में उनकी संख्या बेहद कम होने का अनुमान है।
प्ले ग्रुप और कक्षा एक में नया नामांकन अनिवार्य
देश भर में नया नामांकन अब केवल प्ले ग्रुप या कक्षा एक में ही लिया जा सकता है। उच्च कक्षाओं में नामांकन के लिए बच्चों की जानकारी यू डायस (Unified District Information System for Education) में होना अनिवार्य है। यदि बच्चे की जानकारी यू डायस में नहीं है, तो वह किसी अन्य स्कूल में नामांकन नहीं ले सकता।
क्या हैं ड्रॉप बॉक्स के बच्चे?
ड्रॉप बॉक्स केंद्र सरकार द्वारा स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की निगरानी के लिए बनाई गई व्यवस्था है। यू डायस पोर्टल पर प्रत्येक छात्र का विवरण दर्ज होता है। जब कोई बच्चा स्कूल छोड़ता है, तो उसकी जानकारी पोर्टल में दर्ज कर दी जाती है और वह ड्रॉप बॉक्स में चला जाता है। बच्चा जब किसी अन्य स्कूल में नामांकन लेता है, तो उसकी जानकारी पोर्टल से अपडेट हो जाती है और वह ड्रॉप बॉक्स से बाहर आ जाता है।
सरकार के प्रयास और सवाल
शिक्षा विभाग ने जिलों को बच्चों की पहचान सुनिश्चित करने और उनका दोबारा नामांकन कराने के निर्देश दिए हैं। इसके बावजूद ड्रॉप बॉक्स में बच्चों की बढ़ती संख्या यह सवाल खड़ा करती है कि सरकारी प्रयास कितने प्रभावी हैं।